विविध >> कितना सच कितना झूठ कितना सच कितना झूठउज्जवल पाटनी
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नेटवर्क मार्केटिंग पर एक निष्पक्ष, निर्भीक व ईमानदार कृति...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
मेरे मन की बात
‘‘जानना नहीं करना महत्वपूर्ण है’’
आप इस क्षेत्र में पुराने हैं, आप ज्ञानी हैं, आपको नेटवर्क मार्केटिंग के बारे में सब कुछ मालूम है, आपको सारे कम्पेन्सेशन प्लान की जानकारी है, आपको सारी नेटवर्क कंपनियों की जानकारी है, आपने सारे श्रेष्ठ लेखकों की
किताबें पढ़ी हैं, आपने एक से बढ़कर एक टेप सुने है और वीडियो देखे हैं,
आप नेटवर्क मार्केटिंग पर शास्त्र लिखने की योग्यता रखते हैं।
‘‘लेकिन क्या आप डायमण्ड हैं’’
मित्रों, मेरे पास इतना वक्त नहीं है कि मैं आपकी गहराई नापूं, आपकी विद्वता की ऊँचाई देखूं, मेरा तो सिर्फ एक सीधा और तीखा सवाल है।
‘‘जब आप इतने अनुभवी हैं, ज्ञाता हैं, विद्वान हैं, पुराने हैं तो आखिर डायमण्ड क्यों नहीं हैं’’, इसका अर्थ यह है कि इन सब के बावजूद कोई तत्व है जिसकी आपके अंदर कमी है।
मैं सिर्फ एक बात जानता हूं कि ‘‘आप कितना जानते हैं, वह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कितना करते हैं’’। हो सकता है कि आप 100 सूत्र जानते हैं लेकिन सिर्फ 5 सूत्रों का ही पालन करते हो और एक दूसरा व्यक्ति सिर्फ 20 सूत्र जानता है लेकिन उसमें से 15 का पालन करता है तो मेरी नजर में वह दूसरा व्यक्ति आपसे ज्यादा सफलता के योग्य है।
सुप्रसिद्ध फिल्म ‘लगान’ का वह सीन याद करिए जब एक सरदार देवासिंह आकर टीम में शामिल होने की इच्छा जाहिर करता है। यह सुनकर एलिजाबेथ पूछती है कि तुम क्रिकेट के बारे में क्या जानते हो, तो देवासिंह जवाब देता है–मैं सिर्फ दो बात जानता हूँ कि जब भी गेंद फेकूँ तो गिल्लियां बिखेर दूं और जब भी गेंद को मारूं तो सीमा रेखा के बाहर जा गिरे।
इन्हीं लाइनों में जीवन का मर्म छुपा है। आप सिर्फ उतनी ही जानें जितनी बातें काम की है और उन पर पूरी ताकत लगा दें तो आपकी सफलता को कोई नहीं रोक सकता। इसके विपरीत आपका ज्ञान भंडार तो बहुत विशाल है लेकिन उपयोग में नहीं आता है तो आपकी विफलता को कोई नहीं रोक सकता। इस कृति को पढ़ने के बाद आपकी कई धारणाएं टूटेंगी, कुछ बातों पर विश्वास होगा तो कुछ पर अविश्वास, लेकिन एक बात तय है कि आपकी सोचने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। एक बार सोचने की प्रक्रिया शुरू हो गई तो सुधरने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी।
इस कृति को अमली जामा पहनाने का साहस मुझे ‘‘नेटवर्क मार्केटिंग–जुड़ो जोड़ो जीतो’’ की अपार सफलता से मिला। हर रोज सुबह पांच बजे से लेकर रात दो बजे तक पाठकों के फोन कॉल्स ने मुझे प्रेरणा दी। मुझे असलियत का ज्ञान हुआ कि कितनी ज्यादा तादात में लोग इस व्यापार के माध्य से सुनहरे भविष्य का सपना संजोए हुए हैं। मुझे ट्रेनिंग का मौका देने वाली कंपनियों का, ई-मेल, पत्र व फोन से स्नेह व्यक्त करने वाले पाठकों का तथा मुझ पर भरोसा करने वाले परिवारजनों का मैं हृदय से आभारी हूँ।
इस पुस्तक को लिखने के दौरान मेरे घर में लक्ष्मी के रूप में मेरी नन्ही सी बिटिया ‘‘किरन्या’’ का आगमन हुआ जिससे मेरे परिवार को संपूर्णता मिली।
‘‘लेकिन क्या आप डायमण्ड हैं’’
मित्रों, मेरे पास इतना वक्त नहीं है कि मैं आपकी गहराई नापूं, आपकी विद्वता की ऊँचाई देखूं, मेरा तो सिर्फ एक सीधा और तीखा सवाल है।
‘‘जब आप इतने अनुभवी हैं, ज्ञाता हैं, विद्वान हैं, पुराने हैं तो आखिर डायमण्ड क्यों नहीं हैं’’, इसका अर्थ यह है कि इन सब के बावजूद कोई तत्व है जिसकी आपके अंदर कमी है।
मैं सिर्फ एक बात जानता हूं कि ‘‘आप कितना जानते हैं, वह उतना महत्त्वपूर्ण नहीं है, महत्त्वपूर्ण यह है कि आप कितना करते हैं’’। हो सकता है कि आप 100 सूत्र जानते हैं लेकिन सिर्फ 5 सूत्रों का ही पालन करते हो और एक दूसरा व्यक्ति सिर्फ 20 सूत्र जानता है लेकिन उसमें से 15 का पालन करता है तो मेरी नजर में वह दूसरा व्यक्ति आपसे ज्यादा सफलता के योग्य है।
सुप्रसिद्ध फिल्म ‘लगान’ का वह सीन याद करिए जब एक सरदार देवासिंह आकर टीम में शामिल होने की इच्छा जाहिर करता है। यह सुनकर एलिजाबेथ पूछती है कि तुम क्रिकेट के बारे में क्या जानते हो, तो देवासिंह जवाब देता है–मैं सिर्फ दो बात जानता हूँ कि जब भी गेंद फेकूँ तो गिल्लियां बिखेर दूं और जब भी गेंद को मारूं तो सीमा रेखा के बाहर जा गिरे।
इन्हीं लाइनों में जीवन का मर्म छुपा है। आप सिर्फ उतनी ही जानें जितनी बातें काम की है और उन पर पूरी ताकत लगा दें तो आपकी सफलता को कोई नहीं रोक सकता। इसके विपरीत आपका ज्ञान भंडार तो बहुत विशाल है लेकिन उपयोग में नहीं आता है तो आपकी विफलता को कोई नहीं रोक सकता। इस कृति को पढ़ने के बाद आपकी कई धारणाएं टूटेंगी, कुछ बातों पर विश्वास होगा तो कुछ पर अविश्वास, लेकिन एक बात तय है कि आपकी सोचने की प्रक्रिया शुरू हो जाएगी। एक बार सोचने की प्रक्रिया शुरू हो गई तो सुधरने की प्रक्रिया भी शुरू हो जाएगी।
इस कृति को अमली जामा पहनाने का साहस मुझे ‘‘नेटवर्क मार्केटिंग–जुड़ो जोड़ो जीतो’’ की अपार सफलता से मिला। हर रोज सुबह पांच बजे से लेकर रात दो बजे तक पाठकों के फोन कॉल्स ने मुझे प्रेरणा दी। मुझे असलियत का ज्ञान हुआ कि कितनी ज्यादा तादात में लोग इस व्यापार के माध्य से सुनहरे भविष्य का सपना संजोए हुए हैं। मुझे ट्रेनिंग का मौका देने वाली कंपनियों का, ई-मेल, पत्र व फोन से स्नेह व्यक्त करने वाले पाठकों का तथा मुझ पर भरोसा करने वाले परिवारजनों का मैं हृदय से आभारी हूँ।
इस पुस्तक को लिखने के दौरान मेरे घर में लक्ष्मी के रूप में मेरी नन्ही सी बिटिया ‘‘किरन्या’’ का आगमन हुआ जिससे मेरे परिवार को संपूर्णता मिली।
दूध का दूध पानी का पानी
नेटवर्क मार्केटिंग एक उम्दा व सैद्धांतिक व्यापारिक
प्रणाली है परंतु फिर भी इसे लेकर आम लोगों के मन में इतनी ज्यादा शंकाएं
व भ्रांतियां है, जितनी शायद किसी व्यापार को लेकर नहीं होगी। मैंने कई
बार गहराई से सोचा कि आखिर क्यों इस प्रणाली के विपक्ष में इतना कुछ कहा
जाता है। काफी विचार और अध्ययन के बाद मैं यह कह सकता हूँ कि ये
भ्रांतियां–
• उन कंपनियों के द्वारा फैलाई गई हैं जिनके व्यापार को यह प्रणाली प्रभावित कर रही थी।
• उन फर्जी नेटवर्क कंपनियों के कारण पैदा हुई है, जो गलत सिद्धांत और नीयत के बाजार में आई थी और हजारों लोगों के सपनों से खिलवाड़ कर के चंपत हो गई या फिर उन्हें अपना कामकाज समेटना पड़ा।
• ये भ्रांतियां उन लोगों द्वारा भी फैलाई गई हैं, जो इस व्यवसाय में आधे-अधूरे मन से उतरे थे और असफल हो गये।
• ये शंकाएं उन लोगों द्वारा पैदा की गई हैं जो फटाफट अमीर बनने की नीयत रखते थे परंतु सच्चाई जानते ही बिजनेस छोड़ भाग खड़े हुए।
• ये अफवाहें उन लोगों के द्वारा भी फैलाई गई है जो इस प्रणाली का हिस्सा तो थे परंतु स्थापित सिद्धांतों का पालन नहीं करते थे, अपलाइन की बात नहीं सुनते थे और स्वयं को अति बुद्धिमान समझते थे। घोर असफलता और हताशा के कारण जब उन्हें यह व्यापार छोड़ना पड़ा तो स्वयं की कमजोरी को ढंकने के लिए उन्होंने प्रणाली के विरोध में बोलना शुरू कर दिया।
रोज मुझे कई देशों से पाठकों के विभिन्न विषयों पर ई-मेल मिलते हैं और पत्र आते हैं। नेटवर्क मार्केटिंग से संबंधित अधिकांश पत्रों का विश्लेषण करके मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि लोग इस प्रणाली के बारे में विभिन्न भ्रांतियों से, गहरे तक ग्रसित हैं। मैं इस पुस्तक की शुरुआत बिल्कुल निष्पक्ष होकर करना चाहता हूं, दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहता हूँ इसलिए इस अध्याय को मैंने प्रथम क्रम पर रखा है। आइये, इन धारणाओं को परखें, सच की कसौटी पर...
• उन कंपनियों के द्वारा फैलाई गई हैं जिनके व्यापार को यह प्रणाली प्रभावित कर रही थी।
• उन फर्जी नेटवर्क कंपनियों के कारण पैदा हुई है, जो गलत सिद्धांत और नीयत के बाजार में आई थी और हजारों लोगों के सपनों से खिलवाड़ कर के चंपत हो गई या फिर उन्हें अपना कामकाज समेटना पड़ा।
• ये भ्रांतियां उन लोगों द्वारा भी फैलाई गई हैं, जो इस व्यवसाय में आधे-अधूरे मन से उतरे थे और असफल हो गये।
• ये शंकाएं उन लोगों द्वारा पैदा की गई हैं जो फटाफट अमीर बनने की नीयत रखते थे परंतु सच्चाई जानते ही बिजनेस छोड़ भाग खड़े हुए।
• ये अफवाहें उन लोगों के द्वारा भी फैलाई गई है जो इस प्रणाली का हिस्सा तो थे परंतु स्थापित सिद्धांतों का पालन नहीं करते थे, अपलाइन की बात नहीं सुनते थे और स्वयं को अति बुद्धिमान समझते थे। घोर असफलता और हताशा के कारण जब उन्हें यह व्यापार छोड़ना पड़ा तो स्वयं की कमजोरी को ढंकने के लिए उन्होंने प्रणाली के विरोध में बोलना शुरू कर दिया।
रोज मुझे कई देशों से पाठकों के विभिन्न विषयों पर ई-मेल मिलते हैं और पत्र आते हैं। नेटवर्क मार्केटिंग से संबंधित अधिकांश पत्रों का विश्लेषण करके मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि लोग इस प्रणाली के बारे में विभिन्न भ्रांतियों से, गहरे तक ग्रसित हैं। मैं इस पुस्तक की शुरुआत बिल्कुल निष्पक्ष होकर करना चाहता हूं, दूध का दूध और पानी का पानी करना चाहता हूँ इसलिए इस अध्याय को मैंने प्रथम क्रम पर रखा है। आइये, इन धारणाओं को परखें, सच की कसौटी पर...
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